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आधी उमर करके धुआँ, यह तो कहो किसके हुए / भारत भूषण
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आधी उमर करके धुआँ
यह तो कहो किसके हुए।
परिवार के या गीत के
या देश के
यह तो कहो किसके हुए।
कन्धे बदलती थक गईं
सड़कें तुम्हें ढोती हुई,
ऋतुएँ सभी तुमको लिए
घऱ-घर फिरीं रोती हुई,
फिर भी न टँक पाया कहीं
टूटा हुआ कोई बटन,
अस्तित्व सब चिथड़ा हुआ
गिरने लगे पग-पग जुए।
संध्या तुम्हें घर छोड़कर
दीवा जला मन्दिर गईं,
फिर एक टूटी रोशनी
कुछ साँकलों में घिर गई,
स्याही तुम्हें लिखती रही
पढ़ती रहीं उखड़ी छतें,
आवाज़ से परिचित हुए
केवल गली के पहरुए।
हर दिन गया डरता किसी
तड़की हुई मीनार से,
हर वर्ष के माथे लिखा
गिरना किसी मीनार से,
निश्चय सभी अँकुरान में
पीले पड़े मुरझा गए,
मन में बने साँपों भरे
जालों पुरे अन्धे कुएँ।
आधी उमर करके धुआँ
यह तो कहो किसके हुए।