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आधी रात के उपरान्त एक रसिक स्त्री / राजकमल चौधरी

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आधी रात के उपरान्त रेशमी कोहरे में
एक रसिक स्त्री
टूटे हुए समय-स्तूपों में
अपना भविष्य और अपना निर्वासन-कुंज
ढूँढ़ती हुई

नग्न और एकस्वर होकर
केवल
इतना निर्णय कर पाती है
कभी यहाँ एक देव-मंदिर था
विग्रहविहीन

आधी रात के उपरान्त रेशमी कोहरे में
एक रसिक स्त्री
भग्न खण्ड-प्रस्तर होकर
केवल
देव-विग्रह बन जाती है

किन्तु
टूटे हुए समय-स्तूपों से
अब भी निर्मित नहीं होता है
देव-मन्दिर !