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आनँद सौं, दधि मथति जसोदा, घमकि मथनियाँ घूमै / सूरदास

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 राग आसावरी


(एरी) आनँद सौं, दधि मथति जसोदा, घमकि मथनियाँ घूमै ।
निरतत लाल ललित मोहन, पग परत अटपटे भू मैं ॥
चारु चखौड़ा पर कुंचित कच, छबि मुक्ता ताहू मैं ।
मनु मकरंद-बिंदु लै मधुकर, सुत प्यावन हित झूमै ॥
बोलत स्याम तोतरी बतियाँ, हँसि-हँसि दतियाँ दूमै ।
सूरदास वारी छबि ऊपर, जननि कमल-मुख चूमै ॥


भावार्थ :-- (गोपिका कहती है-) `सखी! मैया यशोदा आनन्द से दही मथ रही हैं, उनकी मथानी घरघराती हुई घूम रही है । परम सुन्दर मोहनलाल नाच रहे हैं, उनके चरण अटपटे भाव से पृथ्वी पर पड़ रहे हैं । उनके ललाट पर (काजल का) सुन्दर डिठौना (बिन्दु) लगा है, उस पर घुँघराली अलकें झूम रही हैं और उनमें मोती गूँथे हैं, इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो भ्रमर मकरन्द (पुष्प-मधु) लेकर उसे अपने पुत्र को पिलाने के लिये झूम रहे हैं । श्यामसुन्दर हँस-हँस कर तोतली बातें कहते हैं, उनकी दँतुलियाँ चमक रही हैं ।' सूरदास जी कहते हैं कि उनकी शोभा पर न्योछावर हुई माता उनके कमल-मुख का चुम्बन करती हैं ।