आनबानवाले / हरिऔध
बीसियों बार छान बीन करें।
पर चलें वे न और का मत लें।
जी करे ढाह दें बिपत हम पर।
पर उतारें न कान के पतले।
जो लगाये कहें लगी लिपटी।
वे कभी बन सके नहीं सच्चे।
क्यों भला बात हम सुनें कच्ची।
हैं न बच्चे न कान के कच्चे।
देख मनमानी बहुत जी पक गया।
अब भला चुप किस तरह से हम रहें।
बात लगती बेकहों को बेधड़क।
हम कहेंगे औ न क्यों मुँह पर कहें।
हम फिरेंगे न बात से अपनी।
आँख जो फिर गई तो फिरने दो।
हम गिरेंगे कभी न मुँह के बल।
मुँह अगर गिर गया तो गिरने दो।
खींच ली जाय जीभ क्यों उन की।
गालियाँ जो कि जी जले ही दें।
बंद होगा न आँख का आँसू।
आप मुँह बन्द कर भले ही दें।
सब समझ सोच तो सकेंगे ही।
आप सारे उपाय कर लेवें।
बंद होगा न, देखना सुनना।
आप मुँह क्यों न बन्द कर देवें।
पड़ गया जब कि देखना नीचा।
तब भला किस तरह न वह खलता।
जब चलाये न बात चल पाई।
तब भला किस तरह न मुँह चलता।
जो पड़े सिर पर, रहें सहतें उसे।
पर न औरों के बुरे तेवर सहें।
दिन बितायें चाब मूठी भर चना।
पर किसी की भी न मूठी में रहें।
तब खरा रह गया कहाँ सोना।
जब हुआ मैल दूर आँचें खा।
क्यों न मुँह की बनी रहे लाली।
गाल क्यों लाल हो तमाचे खा।