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आना-जाना / भारत यायावर
Kavita Kosh से
कोई आता है दबे पाँव
मेरे दिल के क़रीब
वह मेरे रोम-रोम में समाता है
कोई बरसों से मेरे साथ रहा
वह दिल से निकल
दूर, बहुत दूर चला जाता है ।
और आता है जो
हँसता है मेरे पास खड़ा
वह शख़्स मुझे अपना बनाता है
मेरे सीने से लग जाता है
मेरी आँखों में
उतरकर
दिल में जगह बनाता है
फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरी रुह को सहलाता है ।
यह सिलसिला है
जो बना रहता है
कोई हो रंग
या चमक
या ख़ुशबू
या हो दुनिया का चलन
एक का आना
दूसरे का चला जाना है ।
मैं न रोता हूँ
न पछताता हूँ
मैं न खोता हूँ
और न कुछ पाता हूँ ।
कोई आता है
बसा लेता हूँ
और जाने वाले को
दुआ देता हूँ ।