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आना-पाई हिसाब आया है / आनंद कुमार द्विवेदी
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मेरे हिस्से अज़ाब आया है
और उनपे शबाब आया है
एक क़तरा भी धूप न लाया
बेवजह आफ़ताब आया है
पहले खत में नखत निकलते थे
बारहा माहताब आया है
खुशबुएँ डायरी से गायब हैं
हाथ, सूखा गुलाब आया है
मुझको इंसान बुलाना उनका
क्या कोई इंकलाब आया है
अब वहां कुछ नहीं बचा मेरा
आना-पाई हिसाब आया है
मेरा मुंसिफ मेरे गुनाहों की
लेके मोटी किताब आया है
पहले ‘आनंद’ था ज़माने में
धीरे-धीरे हिज़ाब आया है