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आना देखा, जाना देखा / विजय किशोर मानव

आना देखा, जाना देखा।
एक मुसाफ़िरख़ाना देखा॥

दौरे पर आए बाज़ों का
चिड़िया के घर खाना देखा।

हर झुग्गी में मिले सिपाही
ड्यूटी करता थाना देखा।

संत बेचते भोग-कथाएं
मंदिर में मयख़ाना देखा।

पिंजरे में उड़ गया पखेरू
रक्खा आबोदाना देखा।

प्रजातंत्र के इस जंगल में
क़ाबिज़ एक घराना देखा।

पंख कटाने को पंछी का
पिंजरे-पिंजरे जाना देखा।

ठग मचान पर तनकर बैठे
ध्वज का शीश झुकाना देखा।

जब-जब मारे क्रौंच किसी ने
वाल्मीकि का गाना देखा।