भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आना / कैलाश मनहर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आऊँगा
बारिश से भीगे खेतों पर
क्वार की धूप बनकर
चमकता-सा....

आऊँगा
थके हुए बदन की रगों में
धारोष्ण दूध की तरह
उफनता-सा....

आऊँगा
रूठी हुई प्रेमिका की आँखों में
मानभरी लालिमा लिए
दमकता-सा....

आऊँगा
अकेले बच्चे के पास
नाचती हुई चिड़िया के परों में
लचकता-सा....

आऊँगा
मकई के दानों में बनकर
मिठास,
शरद के आसपास
सूर्योदय के साथ
चूमने को तुम्हारे खुरदरे हाथ
जरूर जरूर आऊँगा,
करना तुम -- इन्तज़ार....