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आनेवाला खतरा / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
इस लज्जित और पराजित युग में
कहीं से ले आओ वह दिमाग़
जो खुशामद आदतन नहीं करता
कहीं से ले आओ निर्धनता
जो अपने बदले में कुछ नहीं माँगती
और उसे एक बार आँख से आँख मिलाने दो
जल्दी कर डालो कि पहलने-फूलनेवाले हैं लोग
औरतें पिएँगी आदमी खाएँगे -– रमेश
एक दिन इसी तरह आएगा -– रमेश
कि किसी की कोई राय न रह जाएगी -– रमेश
क्रोध होगा पर विरोध न होगा
अर्जियों के सिवाय -– रमेश
ख़तरा होगा ख़तरे की घण्टी होगी
और उसे बादशाह बजाएगा -– रमेश
(1974)