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आने वाला जो है संकट / हरिवंश प्रभात
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आने वाला जो है संकट उसे टाला जाए।
गाड़ भँवर में है सफ़ीना तो निकाला जाए।
क़ीमती है बड़ी दौलत ये कविता मेरी,
माल खोये न कहीं इसको सम्भाला जाए।
कोई मेहनत से बना करता है दुनिया में भला
उन पर इल्ज़ाम का पत्थर न उछाला जाए।
वह हक़ीक़त ही बयान करता है हरदम
आईने पर कोई परदा नहीं डाल जाए।
अपने भाई को लगा लो तुम मुहब्बत से गले,
नफ़रतों का भी कोई साँप न पाला जाए।
बढ़ के ‘प्रभात’ जलाओ तुम मुहब्बत का चिराग़,
ज़िंदगी भर न कभी उसका उजाला जाए।