आने वाले कल की सोचो / योगेन्द्र दत्त शर्मा
यों न आज का गला दबोचो
आने वाले कल की सोचो
पूछेगी जब अगली पीढ़ी
बन्धु ! कहो, क्या उत्तर दोगे ?
कल पूछेंगे लोग कि तुमने
असहनीय को सहा भला क्यों
अपनी विद्रोही आत्मा को
अपने पैरों से कुचला क्यों
जैसे अब हो, क्या वैसे ही
तब भी, बस, ख़ामोश रहोगे ?
पूछेंगे वे, हर अनीति को
तुमने चुप स्वीकार किया क्यों
स्वर न उठाया क्यों विरोध में
कभी नहीं प्रतिकार किया क्यों
उनके प्रश्नों के उत्तर में
तब भी क्या चुप्पी साधोगे ?
प्रश्न उठेंगे, घटनाक्रम में
तुमने क्या भूमिका निभाई
कहाँ-कहाँ तुम रहे उपस्थित
कहाँ-कहाँ पर आग बुझाई
तर्क अकर्मकता का, आखिर
किस-किसको तुम समझाओगे ?
सच जब लहूलुहान पड़ा था
क्या मरहम का लेप किया था
छोड़ नपुंसक तटस्थता को
क्या कुछ हस्तक्षेप किया था
प्रश्नों से टकराओगे या
कतराकर बगलें झाँकोगे ?
कल जब न्यायालय में होंगी
मौन सफ़ेदी, मुखर सियाही
किसके प्रबल पक्ष में दोगे
तुम अपनी निष्पक्ष गवाही
चट्टानों-से अडिग रहोगे
या कि हवा के साथ बहोगे ?
अभी सोच लो, समय न करता
कभी किसी की, कहीं प्रतीक्षा
सही-ग़लत के निर्णय में वह
करता है बेबाक समीक्षा
आज अगर तुम सम्भल न पाए
तो फिर कल कैसे सम्भलोगे ?