आने वाले युगों की ख़ातिर / ओसिप मंदेलश्ताम
आने वाले युगों की गरजती गरिमा की ख़ातिर
उन्नत मानव समाज की ख़ातिर
पितरों के भोज में वंचित रहा मैं अपने प्याले से,
वंचित रहा आनन्द और सम्मानित होने के अवसर से ।
आ झपटता है मेरी पीठ पर मेरा युग-भेड़िया पकड़ता हुआ कुत्ता,
पर अपने ख़ून से तो मैं हूँ नहीं कोई भेड़िया,
टोपी की तरह छिपाओ मुझे
साइबेरियाई स्तेपी के गर्म फ़रकोट की आस्तीन में ।
कि मुझे देखने की न मिलें काई, कीचड़ और गन्दगी
न ही पहियों पर लगी ख़ूनसनी हड्डियाँ
कि मेरे सामने रात भर चमकती रहें
ध्रुवप्रदेश की नीली लोमड़ियाँ अपने आदिम सौंदर्य में ।
मुझे ले चलो रात्रि-प्रदेश में जहाँ बहती है येनिसेई नदी
जहाँ तारों तक पहुँचती है देवदारूओं की चोटियाँ,
कि अपने ख़ून से मैं हूँ नहीं कोई भेड़िया
कोई मार सका यदि मुझे वह होगा मेरी ही बराबरी का ।
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह