आन्ना अख़्मातवा के लिए एक बँगला कविता / अनुराधा महापात्र
नींद और नींद के उस पार
वह अग्निगुफ़ा सुलग रही है।
मैं नीहारिका के प्रवाह में
छलाँग लगाना चाहती हूँ,
प्रलय-सुर के शीर्ष पर
केवल अपमान और मृत्यु के चक्रवात उठते हैं।
सोचती हूँ कि शायद
मुक्ति का तूफ़ान आ रहा है
सोचती हूँ मस्तक के चूल्हे से
ब्रह्मकमल और ऊर्ध्वगामी आकाश का आभास
उतर रहे हैं समतल की ओर।
मैं केवल उसकी अग्निशोक शिल्पमय
असीम आँखों के बारे में सोचती हूँ
और वह वृक्ष जड़ें ऊपर करके उड़ता रहता है।
इस धरती पर स्पन्दित
कलियों की ख़ुशबू
प्रलय के वेग से माथे के भीतर तक उतर जाती है।
और दीवार वाले रास्तों पर
सन्तान की मृत्यु की तसवीर दिखाई देती है
उसके हृदय के झुलसे हुए नीलमणी फूल
उड़ते दिखाई देते हैं,
लगातार उड़ रही है पृथ्वी
उसकी अनन्त रक्तवर्णी कविता
आन्ना अख़्मातवा की बेकबुल उँगली का
आहुतिविस्मय!
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी