Last modified on 17 जुलाई 2014, at 10:39

आन्हर जिनगी! / यात्री

आन्हर जिनगी
सेहंताक ठेङा सँऽ थाहए
बाट-घाट, आंतर-पाँतरकेँ
खुट खुट खुट खुट...

आन्हर जिनगी
चकुआएल अछि
ठाढ़ भेल अछि
युगसंधिक अइ चउबट्टी लग
सुनए विवेकक कान पाथिकँ
अदगोई-बदगोई

आन्हर जिनगी
नाङड़ि आशाकेर कान्ह पर हाथ राखि कँऽ
कोम्हर जाइ छएँ ?
ओ गबइत छउ बटगवनी
तोँ गुम्म किए छएँ ?
तऽहुँ धऽ ले कोनो भनिता!

आन्हर जिनगी
शांति-सुंदरी केर नरम आड़ ुरक स्पश सँऽ
बिहुँसि रहल अछि!
खंड सफलताकेर सलच्छा सिहकी
ओकर गत्र-गत्रमे
टटका स्पंदन भरि देलकइए...