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आपका अपना कोई चेहरा नहीं / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
आपका अपना कोई चेहरा नहीं
आइना क्या आपने देखा नहीं
धूप की बातों से वो थकता नहीं
जो कभी भी धूप में निकला नहीं
जिसकी ख़ातिर उम्र हमने काट दी
आज तक वो सामने आया नहीं
चलतेचलते थक गई है ज़िन्दगी
रास्ते में एक भी साया नहीं
देखिए तो मेहरबानों की है भीड़
सोचिए तो एक भी अपना नहीं