भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपका शहर देख सदा सोचा करते हैं / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपका शहर देख सदा सोचा करते है।
कब ठहरते हैं लोग, कब बात किया करते हैं?

दूर से देखते ही रास्ता बदल लेते,
यहां दोस्त ऐसे भी मिला करते हैं!

रोशनी में लगा नुमाइश नंगे जिस्मों की,
फिर उनको कीमती लिबास दिया करते हैं!

यहां वहां उठती इमारतों के मालिक,
कितने अरमानों को दवा दिया करते हैं!

चीखते सायरन औ` चौतरफ फैला धुआं,
ऐसे माहौल में कैसे जिया करते हैं!