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आपकी आँख में जो नमी थी दिखी / रंजना वर्मा

आपकी आँख में जो नमी थी दिखी, बन के आँसू कपोलों पे ढलने लगी
हम हमेशा जिसे थे छिपाते रहे, कल्पना वो हृदय में मचलने लगी

दूर पर तितलियों की कतारें दिखीं, हैं भ्रमर की डराने लगीं पँक्तियाँ
हर कली है स्वयं में सिमटने लगी, डाल अब वृक्ष की भी है' छलने लगी

है ये' माना कि जीवन कठिन था बहुत, किन्तु थी मृत्यु भी ब्रह्म के हाथ में
सोच कर कुछ नया जब जतन कुछ किया, जिंदगी फिर नयी राह चलने लगी

है अँधेरा बहुत कुछ नहीं दीखता, रोशनी का दिया ढूँढने हम चले
राह में ग़म चिपटने लगे इस तरह, दर्द की मोमबत्ती पिघलने लगी

जब बुझाने चले वैर के दीप को, विघ्न के नाग पग से लिपटने लगे
किन्तु साहस किया हम रुके जब नहीं, नेह की वर्तिका खुद ही' जलने लगी

फिर शिथिल पड़ गयीं रात की धड़कनें, सांवरी चूनरी झिलमिलाने लगी
दो नयन सीप ज्यों मत्स्य कन्या युगल,अश्रु के पा खिलौने बहलने लगी

घिर गयीं जब घटायें गगन द्वीप पर, है नदी सा लहरने लगा शुभ्र जल
लड़खड़ाने लगे रौशनी के नगर, मुग्ध विद्युल्लता फिर संभलने लगी