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आपकी कश्ती में बैठे, ढूँढते साहिल रहे / द्विजेन्द्र 'द्विज'

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आपकी कश्ती में बैठे, ढूँढते साहिल रहे

सोचते हैं अब कि हम तो आज तक जाहिल रहे


बस्तियों को जो मिला है आपसे ख़ैरात में

उसमें अक्सर नफ़रतों के ज़हर ही शामिल रहे


जब गुनहगारों के सर पर आपका ही हाथ है

वो तो मुंसिफ़ ही रहेंगे, वो कहाँ क़ातिल रहे ?


ज़िन्दगी कुछ आँकड़ों का खेल बन कर रह गई

और हम इन आँकड़ों का देखते हासिल रहे


मुद्दतों से हम तो यारो ! एक भारतवर्ष हैं

आप ही पंजाब या कश्मीर या तामिल रहे


आपसे जुड़ कर चले तो मंज़िलों से दूर थे

आपसे हट कर चले तो जानिब—ए—मंज़िल रहे