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आपकी नज़रों तक हम पहुँचे कुछ मख़सूस ख़यालों से / शलभ श्रीराम सिंह

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आपकी नज़रों तक हम पहँचे कुछ मख़सूस ख़यालों से
लोग तो दिल तक आ जाते है चलकर चंद सवालों से

ख़ैर हो उनकी जिनके लब तक उन हाथों से जाम गए
जिन हाथों ने फूल चुने हैं पेड़ से बिछड़ी डालों से

आँखों में पानी, मन में बादल, होंट पे चुप्पी बैठी कोई
दिल से दिल की बात हुई है दो हिलते रूमालों से

जिनके घर की छत से होकर सूरज रोज़ गुजरता है
उन तक कोई किरन न पहुँची पिछले अनगित सालों से

बे दस्तक-बेजान घरों के दरवाज़े मुँह खोल न दें
आज तो कमरों की तस्वीरें उलझी हैं दीवालों से

साबित चेहरा लेकर कैसे आज 'शलभ' तुम घूम रहे
झाँक रहे हैं टूटे-टूटे दरपन घर के आलों से

चाँद पहाड़ी के पिछवाड़े मुँह लटका कर बैठ गया
रूठ गया हो जैसे कोई अपने ही घर वालों से


रचनाकाल : 14 मार्च 1984, आगरा

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।