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आपकी मौत / हरिमोहन सारस्वत

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आपकी मौत उस वक्त नहीं होती
जब आपकी सांसें बंद होती है
उस वक्त भी जिंदा होते हैं आप
ख्यालों में
बातों में
आंसुओं में
भीगी रातों में

दरअसल, उस वक्त
आपकी जिंदगी का स्वर्णकाल होता है
परिवार और मित्र लोग
सिर्फ आपकी अच्छाइयों की चर्चा करते हैं
आपकी सारे अवगुण
सारी बुराइयां भुला दिये जाते हैं
आपके व्यक्तित्व की शान में
वो कशीदे निकाले जाते हैं
जिनका पता शायद
जीते जी आपको भी नहीं लगा
तभी तो बैठक में लगी
आपकी माला पड़ी तस्वीर
मुस्कुरा कर पूछती है-
‘यार, क्या वाकई मैं इतना लायक था ?’

जिंदगी के इस हसीन दौर में
आपके एक ही वार से
सारे दुश्मन हथियार डाल देते हैं
सिर झुकाए
हाथ जोड़े
कई तो तुम्हारे घर तक
चलकर आ जाते हैं
मजे की बात,
वे भी तुम्हे महान बता जाते हैं

सच कहूं
तो उस वक्त तुम्हारा घर
राजदरबार हो जाता है
नेता/अभिनेता
अड़ौसी/पड़ौसी
चाची/ताई
मौसा/मौसी
सब तुम्हारे दरबार में
नंगे पांव आकर
दरी पर बैठते हैं
पलक झपकते ही
तुम रंक से राजा बन जाते हो

तुम्हारी याद में
जनानाखाने की औरतें
रूदाली बन जाती हैं
कोई सच में रोती है
कोई झूठ में रोती है
कहीं जाडे़ जुड़ते है
कोई आपा खोती है
औरतें वाकई औरतें होती है

बारह दिन
सबके दिल दिमाग पर
एकछत्र तुम्हारा राज चलता है
तुम्हारे नाम से सूरज निकलता है
तुम्हारी याद में रात ढलती है
उठते-बैठते
खाते-पीते
रोते-धोते
सिर्फ तुम्हारी चर्चा चलती है
और तेरहवें दिन..।

तेरहवें दिन
भोर के सूरज से
तुम्हारा नाम गायब होता है
तस्वीरों में बोलती तुम्हारी आंखें
हमेशा के लिए ठहर जाती है
सांझ ढलते-ढलते
तुम्हारे राज दरबार की दरी उठ जाती है
और सही मायनों में
उसी वक्त तुम्हारी मौत हो जाती है