भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपके जलवों ने लूटा है मुझे / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आपके जलवों ने लूटा है मुझे
मीठी मुस्कानों ने लूटा है मुझे
मोतियों से झोलियां भर जायेंगी
रेशमी वादों ने लूटा है मुझे
मुल्क की तस्वीर जाएगी बदल
ऐसी उम्मीदों ने लूटा है मुझे
कोई अर्जुन ही समझ सकता इसे
किस तरह भीलों ने लूटा है मुझे
चार दाने भी नहीं घर में बचे
घर के रखवालों ने लूटा मुझे
ज़िंदगी में ख़ास बनकर जो रहे
ऐसे ऐयारों ने लूटा है मुझे
जो मुझे दिखला रहे थे सब्ज़बाग़
उन हसीं ख़्वाबों ने लूटा है मुझे