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आपके समकालीन / विजय कुमार देव
Kavita Kosh से
लोग आते हैं आपके पास
राहत की तरह,
आपकी परेशानी में उतरते हैं
कुण्डली के क्षुद्रग्रहों जैसे,
उगते हैं कभी
खिले गुलाब की हरी कच्च डाल पर
काँटों की तरह,
बाधा की तरह आते हैं कभी।
आपके हिस्से में उतरते हैं
सूदखोर की तरह,
नीद में आते हैं करवट बनकर
कर्जे की किस्तों जैसे ,
सपने में डर की शक्ल में
खुशी में हार्टअटैक जैसे
बिजली-सी कौंध की तरह
पतझड़ के मौसम में
आग के लिए हवा बनकर
चले आते हैं लोग।
चले आते हैं आपके पास कुछ
बाज़ार की सस्ती चीज़ की तरह
आपकी मुसीबत में दुआ की तरह
ग़रीबी में मुआवज़े जैसे
नीद की दवा की तरह
पृथ्वी पर हरियाली जैसे |
क्यों नहीं आते
एकमुश्त
भाषा में संवेदन की तरह
आदमक़द इंसान जैसे सम्पूर्ण
आपके समकालीन ?