आपके स्वागत खातिर तैयार बैठा हूँ।
पास में लेकर सारा संसार बैठा हूँ।।
दूर से चलकर मेरे घर आप आये हैं।
मै सजा फूलों से ये दरबार बैठा हूँ।।
राम ने शबरी के जूठे बेर खाये थे।
प्यार का देने को मैं भंडार बैठा हूँ।।
कौन कितने पानी में पहचान है मुझको।
आज मैं देने को बस उपहार बैठा हूँ।।
हर जगह गुणवान का गुणगान होता है।
मान सम्मानों का ले त्योहार बैठा हूँ।।