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आपको अपने बदलते रंग न दिखते / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आपको अपने बदलते रंग न दिखते
गिरगिटों को बेवजह बदनाम करते
कल तलक मिलते रहे जय भीम कहके
आज जै श्रीराम , जै श्रीराम भजते
लाल टोपी थी कभी पहचान उनकी
पांव से अब सर तलक भगवे में दिखते
जब से घर आने लगा है मुफ़्त राशन
शाम को मजदूर मैखाने में मिलते
उनको मंहगाई भला कैसे दिखेगी
भक्तिरस में रात दिन डूबे जो रहते
नौकरी की क्या ज़रूरत अब उन्हें है
जेब में कट्टे जो अब हर वक्त रखते
फ़ायदे की राह पर सब चल पड़े हैं
अब क़लम वाले क़सीदे सिर्फ़ लिखते