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आपदा आणी, आपदा आणी / महेंद्र सिंह राणा आज़ाद
Kavita Kosh से
“थाती गौं छौड़ी के
लटी-पटी करी के
जुं बस्या च आज गाढ़sक छाला
संस्कृति-संस्कार पैली इनोन ही बिसराई
द्वी दिन पौs-पुज्यै, बौs-बरात अर कौs-कारज मा गौं ऐ के
सीदा-सादा गौं वलु तें बिरड़ियाई
कि 'यsख त सारा गंवार चा'
बोsली के सारु कु निरछट करी
ताsबे द आज हर चौsमास
गंगsजी छाँटी-छाँटी के लिजाणी
ताsब अजी बुणा कि
आपदा आsणी बल आपदा आsणी।