भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपने इतना दिया है ध्यान सड़कों पर / द्विजेन्द्र 'द्विज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपने इतना दिया है ध्यान सड़कों पर
हर क़दम पर बन गए शमशान सड़कों पर

हक़ उन्हें अब भी कहाँ है उनपे चलने का
ज़िन्दगी जिनकी हुई क़ुर्बान सड़कों पर

चीखने वालों ने तो हर बात मनवा ली
‘शांत स्वर’ को कब मिले हैं ‘कान’ सड़कों पर

अब दिशा विश्वास को कोई नई दे दो
मंदिरों में भीड़ है भगवान सड़कों पर

‘द्विज’! अकेली ‘गुनगुनाहट’ कौन सुनता है
आ चलें ले कर नया सहगान सड़कों पर