भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपने इतना दिया है ध्यान सड़कों पर / द्विजेन्द्र 'द्विज'
Kavita Kosh से
आपने इतना दिया है ध्यान सड़कों पर
हर क़दम पर बन गए शमशान सड़कों पर
हक़ उन्हें अब भी कहाँ है उनपे चलने का
ज़िन्दगी जिनकी हुई क़ुर्बान सड़कों पर
चीखने वालों ने तो हर बात मनवा ली
‘शांत स्वर’ को कब मिले हैं ‘कान’ सड़कों पर
अब दिशा विश्वास को कोई नई दे दो
मंदिरों में भीड़ है भगवान सड़कों पर
‘द्विज’! अकेली ‘गुनगुनाहट’ कौन सुनता है
आ चलें ले कर नया सहगान सड़कों पर