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आपने पत्थर कहा जिनको उन्हें पहचानिए / पुरुषोत्तम प्रतीक

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आपने पत्थर कहा जिनको उन्हें पहचानिए
पत्थरों में आग होती है, हमारी मानिए

घूमती है मौत सबको गोद में लेकर यहाँ
कौन, कितना मर चुका है, सिर्फ़ इतना जानिए

फिर हवा के साथ बारिश हो रही है दोस्तो !
ये भिगोकर ही रहेगी लाख छाते तानिए

है सियासत की रगों का ख़ून गँदलाया हुआ
साफ़ हो मुमकिन कहाँ, अब छानिए मत छानिए

शायरी ही ज़िन्दगी हो, ज़िन्दगी ही शायरी
ज़िन्दगी या शायरी में इस तरह की ठानिए