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आपनोॅ छाँव / नवीन ठाकुर 'संधि'
Kavita Kosh से
नुनू देखलकै एैना,
आपनोॅ मुँह कान नैना।
वैं पकड़लकै झपटी केॅ,
लेलकै देहोॅ सें सपटी केॅ।
डरलै जरा सा भड़की केॅ,
बोललै कुछूँ आँखि इसारा सें झपकी केॅ।
सुखलोॅ मँुह कान जेन्हाँ,
नुनू देखलकै एैना।
नजर पड़लै वोकरोॅ माय पेॅ,
कानलै हाथ बढ़ाय केॅ।
उठाय के कोरा, देलकै दूध पियाय केॅ,
दादी लग देलकै, ओकरा बैठाय केॅ।
आबेॅ भागतै ‘‘संधि’’ केना,
नुनू देखलकै एैना।