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आपसे मिलकर खुशी भी झूमने लगती / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

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आपसे मिलकर खुशी भी झूमने लगती।
बात कुछ भी हो न हो कुछ ढूंढने लगती।।

बाग में देखो हजारों फूल खिलते हैं।
देख फूलों को हवा भी चूमने लगती।।

चांदनी से चांद जब भी रूठ जाते हैं।
शाम ढलते चांदनी फिर खोजने लगती।।

घाव पर मरहम लगाना छोड़ मत देना।
मुस्कुराहट की दवा से भूलने लगती।।

जिं़दगी ज़िंदादिली का नाम है यारो।
गर मुहब्बत पा गई तो घूमने लगती।।