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आपसे मिलने की इच्छा बलवती हुई / कैलाश झा 'किंकर'
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आपसे मिलने की इच्छा बलवती हुई
दिन बड़ा लगता है अब रजनी बड़ी हुई।
व्यस्त रहना है ज़रूरी व्यस्त हैं सभी
अब तो मोबाइल से आफत खड़ी हुई।
और की चाहत से सुरसा जी उठी है फिर
इसलिए दहशत-भरी यह ज़िन्दगी हुई।
जी रहे हैं शान से रहमो-करम पर जो
आँख दिखलाते वही, कैसी सदी हुई।
लोकहित से भी बड़ा ज्यों स्वार्थ हित हुआ
सृष्टि के उस रचयिता से दुश्मनी हुई।
रात भी गहरा गयी पर नींद दूर है
जब से कविता से ग़ज़ल से आशिकी हुई।