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आपातकाल / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
तूफ़ान
अभी गुज़रा नहीं है !
बहुत कुछ टूट चुका है
टूट रहा है,
मनहूस रात
शेष है अभी !
जागते रहो
हर आहट के प्रति सजग
जागते रहो !
न जाने
कब.....कौन
दस्तक दे बैठे —
शरणागत।
ज़हर उगलता
फुफकारता
आहत साँप-सा तूफ़ान
आख़िर गुज़रेगा !
सब कुछ लीलती
घनी स्याह रात भी
हो जाएगी ओझल !
हर पल
अलस्सुबः का इंतज़ार
अस्तित्व के लिए !