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आप इतने बेख़बर बैठे हुए / डी .एम. मिश्र
Kavita Kosh से
आप इतने बेख़बर बैठे हुए
आस्तीं में सांप क्या पाले हुए
क्या बगल में हो रहा मालूम क्या
आप तो बेख़ौफ़ हैं सोये हुए
एक बुत को ही समझ बैठे खुदा
बस, इसी विश्वास में धोखे हुए
सामने केवल अदाकारी दिखे
खेल तो पर्दे के सब पीछे हुए
बात करिए पर, ज़रा -सा संभलकर
मूंछ -दाढ़ी वाले अब बेटे हुए
इन पे भी यौवन कभी भरपूर था
दिख रहे हैं पेड़ जो सूखे हुए
घोंसला खाली, गई चिड़िया कहां
पंख बिखरे हैं पड़े , टूटे हुए
हम ग़रीबों की तो मजबूरी मगर
जो हैं इज़्ज़तदार क्यों नंगे हुए