आप और हम क्या मिलें ये सिलसिला अच्छा नहीं / हरि फ़ैज़ाबादी
आप और हम क्या मिलें ये सिलसिला अच्छा नहीं
फोन पर ही तय करें हर मसअला अच्छा नहीं
गुफ़्तगू से दूर कर लें दूरियाँ मिल-बैठ कर
ज़िंदगी में देर तक कोई गिला अच्छा नहीं
साफ गोई ज़िंदगी में है बहुत अच्छी मगर
याद रक्खें हर किसी से दिल खुला अच्छा नहीं
आपको अच्छा लगे चाहे बुरा है सच यही
आपका सिक्का चला, पर था ढला अच्छा नहीं
कर भला तो हो भला की नीति पर चलिए मगर
अजनबी को घर में देना दाख़िला अच्छा नहीं
माना उसकी हक़ बयानी दिल में चुभती मगर
आईने को तोड़ने का फ़ैसला अच्छा नहीं
शोर करते गन्दगी भी रोज़ घर में वो मगर
तोड़ देना पंक्षियों का घोंसला अच्छा नहीं
क्या मुनासिब है बुराई माना कि इस दौर में
दुनिया देती है भलाई का सिला अच्छा नहीं
अब सहा जाता नहीं पर कौन मुंसिफ़ से कहे
रोज़ कल पर टाल देना फ़ैसला अच्छा नहीं