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आप कहते हैं जो है पैसा है / महेश अश्क
Kavita Kosh से
आप कहते हैं जो है पैसा है।
हम नहीं मानते सब ऐसा है।।
हम तो बाज़ार तक गए भी नहीं
घर में यह मोल-भाव कैसा है।
रात एहसास खुलते ज़ख़्मों का
दिन बदन टूटने के ऐसा है।
कुछ के होने का कुछ जबाव नहीं
कुछ का होना सवाल जैसा है।
क्यों कथा अपनी लिख के हो रुसवा
अपना दुख कोई ऐसा-वैसा है।
आपको तो विदेश भी घर-सा
हमको घर भी विदेश जैसा है।
तुमने दिल दे ही मारा पत्थर पर
यह तो जैसे को ठीक तैसा है...।