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आप कहते हो मियाँ सब छोड़ दो भगवान पर / रवीन्द्र प्रभात

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रो रही पूरी आबादी मुल्क के अपमान पर।
आप कहते हो मियाँ सब छोड़ दो भगवान पर?

बेचकर सरेआम अबला की यहाँ अस्मत कोई
दे रहा है मंच से भाषण दलित-उत्थान पर।।

क्या ज़रूरत आ पड़ी सत्कर्म से पहले कि अब
उँगलियाँ उठने लगी हैं देश में भगवान पर?

अम्न मेरे मुल्क की तहज़ीब है बस इसलिए
बच गए हैं ठेस पहुँचाकर मेरे सम्मान पर।।

हम ग़रीबों की यही फ़ितरत रही है, दोस्तो!
हो गयी बेटी बड़ी नज़रें है छप्पर-छान पर।।