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आप की हूक दिल में जो उठबे लगी / नवीन सी. चतुर्वेदी

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आप की हूक दिल में जो उठबे लगी।
जिन्दगी सगरे पन्ना पलटिबे लगी॥

बस निहारौ हतो चन्द्र-मुख आप कौ।
और ह्रिदे की नदी घाट चढ़िबे लगी॥

प्रेम कौ रंग जीबन में रस भर गयौ।
रेत जल जैसौ ब्यौहार करिबे लगी॥

हीयरे की सुनी तौ भयौ यै गजब।
ओस की बूँद सों प्यास बुझबे लगी॥

गाँठ सुरझे बिना अब न रह पायगी।
आतमा आतमा सों इरझबे लगी॥