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आप जब आँखोँ मेँ आकर बैठ जाते हैँ / सिराज फ़ैसल ख़ान

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आप जब आँखों में आकर बैठ जाते हैं
नींद के मुझसे फरिश्ते रुठ जाते हैं

आपके हँसने से मेरी साँस चलती है
आपके रोने पे तारे टूट जाते हैं

आपका जब पल दो पल का साथ मिलता है
मेरे पीछे सौ ज़माने छूट जाते हैं

आप जब मुझको इशारे से बुलाते हैँ
हम ख़ुशी में सच है चलना भूल जाते हैं

आपके संग होटोँ पे मुस्कान रहती है
आपके बिन हँसते पौधे सूख जाते हैं

रुठने से आपके तो कुछ नहीँ होता
जान जाती है मेरी जब दूर जाते हैं

आपकी नज़दीकियाँ मदहोश करती हैं
आपकी आँखों में सागर डूब जाते हैं ।