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आप जो हँसीं / शिवजी श्रीवास्तव

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13
पढो कबीर
खोजो जीवन सत्य
बनो फकीर।
14
हल्कू उदास
फिर आई बैरन
पूस की रात।
15
आप जो हँसीं
खिड़की से चाँदनी
झाँकने लगी।
16
सूने उर में
यादों के घन घिरे
नैन बरसे।
17
उड़ी पतंगे
सतरंगी चूनर
फैली नभ में।
18
चढ़ गया मैं
झुके कन्धे पिता के
बढ़ गया में।
19
निशा उनींदी
भोर ओढ़नी खींचे
उषा मुस्काए।
20
टूट ही गया
तिलिस्म कोहरे का
बिखरी धूप।
21
सुर्ख गुलाब,
डायरी में अब भी,
तुम्हारी याद।
22
श्रम की बूँदें
झरतीं खेतों बीच
बनतीं सोना।
23
ग्रीष्म तपाए
योगी गुलमोहर
मोद लुटाए।
24
हँसी तुम्हारी,
खिली ताप में बनी
गुलमोहर।
25
कौन मायावी
रंग अद्भुत भरे
धरा निखरे।