आप बदले तो कहाँ हम भी पुराने से रहे / विनय कुमार
आप बदले तो कहाँ हम भी पुराने से रहे।
आप आने से रहे तो हम बुलाने से रहे।
फिर यक़ीनों के परिंदे आसमानों में उडे़
फिर दगी गोली शिकारी बाज़ आने से रहे।
एक दिन इतिहास दुहराएगा अपने आपको
वे इसी उम्मीद में बीते ज़माने से रहे।
इस घने जंगल मे दाने जाल भी होगा ज़रूर
जानते हैं, अब कबूतर हाथ आने से रहे।
तष्तरी में पान रखिए, सीट संसद में हुज़ूर
अब सुपारी-दर-सुपारी हम उठाने से रहे।
छत्रसालों के ज़माने, भूषणों के दिन लदे,
शायरों की पालकी मंत्री उठाने से रहे।
रहनुमा बस्ती जलाने में अभी मसरूफ़ हैं
वे तुम्हारी भूख की लपटें बुझाने से रहे।
थे कभी कुत्ते गली के आज आदमखोर हैं,
लौटकर वापस गली में दुम हिलाने से रहे।
कोरनिष हो, तालियाँ हों, हुक़्म हो या ढोल हो
हम किसी दरबार में कुछ भी बजाने से रहे।
जानते हैं हम तुम्हारी राह की सब मुश्किलें
पूछने से तुम रहे तो हम बताने से रहे।
रख दिया है हाथ उसने जब हमारे हाथ पर
वह उठाने से रहा तो हम हटाने से रहे।