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आप में जब आग है / हरिवंश प्रभात
Kavita Kosh से
आप में जब आग है तब जान है
हैसियत की बस यही पहचान है।
हो रही महफ़िल में है आलोचना
हाशिए पर मर रहा यशगान है।
पागलों जैसा हवस की भीड़ में
बेतहाशा भागता इन्सान है।
हम अगरचे साथ चलना सीख लें,
सख़्त, मुश्किल राह भी आसान है।
खा रहे हैं यक ज़मीं के सब अनाज
एकता की तो यही पहचान है।
मिसले दरिया, बहते रहना है कमल,
ज़िन्दा रहने का यही प्रमाण है।
रुख़ पर है ‘प्रभात’ ख़ुशियों का हुजूम
मन के अन्दर ग़म का इक तूफ़ान है।