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आप रै सुराज मांय / ओम पुरोहित कागद

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गांव री
चौपाळ मांय तूं
आज तक
भोत अंगूठा लगाया है
एक लेय‘र
दस आपरै नांव लिखाया है
तूं
वा कई थावसी है
तपसी है।
पण
बै अंगूठा तो तूं
राजसाई आळै टैम
बो‘रां
अर
साहूकारां री बै‘या पर
लगाया हुवैला!
हाँ, तूं कै ज्यूं
थारी बात ठीक है
म्हारी बात दांईं।
भाईड़ा!
अब जद तूं इणरो आदी है
तो तूं आपरा अंगूठा
चूस‘र साफ मत कर
ओज्यूं तनै
आप रै सुराज मांय
करजायी होगी बाकी है।

बावळा !
तूं समझै क्यूं कोनीं
कै चमकै बांरा भाग
जकरं रा अंगूठा
स्याई स्यूं तर रे‘वै।