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आप से मिलकर न जाने क्यों ख्याल आने लगे / नन्दी लाल

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आप से मिलकर न जाने क्यों ख्याल आने लगे।
हैं बड़े कमजोर दिल के हम जो घबराने लगे।

रास्ता कोई नहीं उम्मीद भी कोई नहीं,
वह हमारा घर बसाने की कसम खाने लगे।

स्वार्थ के बाजार में किस पर भरोसा हम करें,
खास जितने थे हमारे सब वो वीराने लगे।

ज्यों तुम्हारी आदमीयत है मरी, वह मर गये,
जो बचे थे वह खिसककर और पैंताने लगे।

थी बड़ी उम्मीद अपने ही बचा लेंगे मगर,
छोड़कर हमको हमारे हाल पर जाने लगे।

जो मिले दोनों ने अपनी बात दो तरफा कही,
एक समझाने लगे तो एक बहकाने लगे।

राह चलकर थक गया था वह अकेला था ‘निराश’,
छाँव देखी दो घड़ी को वह जो सुस्ताने लगे।