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आफ़ताब है वो मेरा सहर कर रहा है / किरण मिश्रा

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आफ़ताब है वो मेरा सहर कर रहा है ।
दीदार धीरे-धीरे असर कर रहा है ।।

न दिल पास में है ना धड़कन बची है,
मुहब्बत का मौसम ग़ज़ल गा रहा है ।

सँवरती हूँ जब भी आईने के सामने,
प्यार से उसके मेरा बदन खिल रहा है ।

शबनम बन बिखरती फिजाओं में हूँ,
फ़रिश्ता हिफ़ाजत मेरी कर रहा है ।

प्यार मैं भी करती हूँ उससे इस तरह,
जैसे मस्जिद में कोई दुआ कर रहा है ।।