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आफ़ात का गहवारा है हस्ती मेरी / रतन पंडोरवी

आफ़ात का गहवारा है हस्ती मेरी
वीराने से वीरान है बस्ती मेरी।
इस पर भी 'रतन' दिल को सुकूँ हासिल है
हैरान हैं सब देख के हस्ती मेरी।

आबाद है अनवार की दुनिया दिल में
बैठा है कोई दिलबरे-राना दिल में
देखा है 'रतन' चश्मे-हक़ीक़त बीं ने
रानाईए-मस्तूर का जल्वा दिल में।

मशहूर ज़माने में है बख़्शिश तेरी
हर शाह-ओ-गदा पर है नवाज़िश तेरी
अब अपने 'रतन' पर भी करम कर या रब
करता है दिल-ओ-जां परस्तिश तेरी

हर दर्द का हर दुख का मुदावा तू है
बे यार का बे कस का सहारा तू है
किस दर पे बनूँ जाके सवाली या रब
जब सब के नसीबा का नसीबा तू है