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आबहुँ बूढ़ी रूढ़ी छठी-पूजन / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आबहुँ बूढ़ी रूढ़ी<ref>बड़ी बूढ़ियाँ</ref> वयठहुँ आय।
बबुआ के घोँटी<ref>घुट्टी</ref> देहु बतलाय॥1॥
बचा<ref>वचा नामक औषध</ref> महाउर<ref>महावरी, कुलंजन</ref> आउर<ref>और</ref> जायफर<ref>जायफल, जाफर</ref>।
सोने के सितुहा<ref>बड़ी जाति की सीपी</ref> रूपे<ref>चाँदी</ref> के काम।
जसोमती घोँटी देल चुचकार॥2॥

शब्दार्थ
<references/>