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आबऽ एक होय जा / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
सरहद पार करी
भाषा भीत लाँघी करी
छद्म भेष त्यागी करी
नाम आपनऽ हरी करी
अनंत सरंग चूमै लेॅ
आबऽ एक होय जा।
जीती केॅ जीतऽ नै
हारी केॅ हारऽ नै
डूबी केॅ डूबऽ नै
उगी केॅ उगऽ नै
नश्वरता केॅ झेलै लेॅ
आबऽ एक होय जा।
समर कहाँ इ महासमर
भारत केरऽ हृदय अजर-अमर
बिथरऽ-बिथरऽ डगर-डगर
थामै लेॅ अन्धर हर पहर
गागर में सागर होय जा
आबऽ एक होय जा।