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आबऽ खुसी मनावऽ / राम सिंहासन सिंह

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झम-झम बरसा बरस रहल हे आवऽ खुसी मनाबऽ।
भींग रहल घर-आँगन अब जो मन में गीत जगाबऽ।।

बहुत दिनन से आँख गड़ैले
तकते रहली ऊपर
जाने कबतक करिया बदरा
इहाँ बरसतई भू पर
आज आस सब पूरा भेलौ खेतवा चल सजाबऽ।
झम-झम बरसा बरस रहल हे आवऽ खुसी मनाबऽ।।

घर से निकलऽ जलदी-जलदी
हर-जुआढ हेंगा लेके
नया-नया हम फसल उगैवई
अपन मिहनत देके
परती धरती खुदे बिहँसतो गीत सलोना गाबऽ।
झम-झम बरसा बरस रहल हे आवऽ खुसी मनाबऽ।।

हम किसान ही भारत-भूमि के
सबके भूख मिटैबो
आधा पेट स्वयं खा के भी
सबके अन्न खिलैबौ
यही समय हे झूला-झूल, ढोल-मंजीरा लाबऽ।
झम-झम बरसा बरस रहल हे आवऽ खुसी मनाबऽ।।

इरखा द्वेस मिटाबऽ मन से
मिल के खेत सजाबऽ
कोनो कोना रहे न सूना
पौधा नया लगाबऽ
भेद-भाव सब दूर भगावऽ सुख के बीन बजाबऽ।
झम-झम बरसा बरस रहल हे आवऽ खुसी मनाबऽ।।