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आबाद जहाँ पर थीं सितारों की बस्तियाँ / अमरेन्द्र
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आबाद जहाँ पर थीं सितारों की बस्तियाँ
आबाद वहीं पर हैं शरारों की बस्तियाँ
ओठों को चलो सीते, जुबां-आँखों को मूँदे
होती है शुरू याँ से जनाबों की बस्तियाँ
सब जा रहे हैं पाँवों से राहों को टटोले
इसको ही कहते तुम थे, चिरागों की बस्तियाँ
हर शख्स गुनाहों में मुलब्बस मुझे मिला
किस शहर में न अब हैं गुनाहों की बस्तियाँ
इल्मो हुनर के वास्ते अपना दिमाग देख
क्या ढ़ूँढते फिरते हो किताबों की बस्तियाँ
तिनकों से सजा घर है उस पे यह भी मुसीबत
ये घर वहीं जहाँ पे हवाओं की बस्तियाँ
कैसा है मूर्ख हाथ में आगिन लिए चलता
जब जानता है ये हैं पटाखों की बस्तियाँ ।