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आबो-गिल / रेशमा हिंगोरानी
Kavita Kosh से
ये धुआँ धुआँ ये गुबार<ref>धूल, उलझन</ref> क्यूँ
न है दिल को अपने क़रार क्यूँ
क्या वो आ बसे हैं यहीं कहीं
न उतर रहा ये ख़ुमार क्यूँ
मैं हूँ मुत्मईन<ref>संतुष्ट</ref> गमे-यार<ref>महबूब का गम</ref> से,
लूँ गमे-जहाँ<ref>दुनिया के गम</ref> से उधार क्यूँ?
जो थमे न सिलसिला-ए-अलम<ref>दर्द का सिलसिला</ref>
न मस्सरतों<ref>खुशियों</ref> का शुमार<ref>गिनती</ref> क्यूँ
तेरे बिन गुज़र तो मुहाल<ref>मुश्किल</ref> हो,
तेरे साथ भी दुशवार<ref>मुश्किल</ref> क्यूँ?
हुई आबो-गिल<ref>पानी और मिट्टी</ref> में बसर न जब,
तो ज़मीं पे शम्मा, मज़ार<ref>कब्र</ref> क्यूँ?
शब्दार्थ
<references/>