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आब नहिं बाचत पति मोर हे जननी / मैथिली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आब नहिं बाचत पति मोर हे जननी आब नहिं बाचत पति मोर
चारु दिस हम हेरि बैसल छी किया नै सुनई छी दुख मोर हे जननी
आब नहिं बाचत…
उलटि पलटि जौ हम मर जायब हसत जगत क लोक हे जननी
आब नहिं बाचत पति मोर…
एहि बेर रक्षा करु हे जननी पुत्र कहायब तोर हे जननी
आब नहिं बाचत पति मोर…

यह गीत श्रीमती रीता मिश्र की डायरी से